कब और क्यों बनाया जाता है उल्टा स्वास्तिक? जानें इससे होने वाले फायदे, कहां बनाया जाता है ये चिन्ह

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स्वास्तिक का चिन्ह प्राचीन समय से ही शुभ माना जाता है और यह भारत में धार्मिक कार्यों, पूजा, और तंत्र-मंत्र में विशेष स्थान रखता है. जहां एक ओर सामान्य स्वास्तिक का चिन्ह जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है. वहीं उल्टा स्वास्तिक के बारे में भी कई मान्यताएं हैं. उल्टा स्वास्तिक का प्रयोग अक्सर विशेष अवसरों या कठिन परिस्थितियों में किया जाता है और इसे लेकर कुछ लोग सकारात्मक प्रभाव महसूस करते हैं. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

उल्टा स्वास्तिक

उल्टा स्वास्तिक बनाने की परंपरा का संबंध मुख्य रूप से उन स्थानों से है जहां लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं. जब कोई व्यक्ति किसी तीर्थ स्थल, मंदिर या अन्य पवित्र स्थान पर जाता है और वहां उल्टा स्वास्तिक बनाता है, तो वह यह संकेत करता है कि उसकी मनोकामना या समस्या समाधान के लिए है. ऐसा माना जाता है कि उल्टा स्वास्तिक बनाने से नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जा सकता है और उसकी इच्छाओं की पूर्ति में सहायता मिलती है.

स्वास्तिक का उल्टा रूप विशेष रूप से तब बनाया जाता है जब व्यक्ति किसी खास समस्या या कठिनाई से जूझ रहा होता है. जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा पूरी होने के बाद फिर से उसी स्थान पर वापस जाकर सीधा स्वास्तिक बनाता है, तो यह उसकी आभार व्यक्त करने की प्रक्रिया मानी जाती है.

हालांकि, यह ध्यान में रखना जरूरी है कि उल्टा स्वास्तिक केवल उन जगहों पर ही बनाना चाहिए, जहां इसे धार्मिक मान्यता प्राप्त हो, जैसे मंदिर या तीर्थ स्थल. घर में उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूजा का पूरा फल नहीं मिलता है और इसे शुभ नहीं माना जाता है. स्वास्तिक को हमेशा साफ और सुंदर रूप में बनाना चाहिए, ताकि इसका प्रभाव सकारात्मक हो.

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